Wednesday, October 19, 2016

पतंजलि नाम की छाप अगर व्यापार से जुड़ेगा तो उसका मजाक भी जरूर बनेगा-हिन्दीसंपादकीय (Patanjali Name when Linkd with Brand for Tread than would cartoon-Hindi Editorial)

                     देशी हो या विदेशी व्यापार उसमें ऊंच नीच होता ही है।  अनेक छाप लगाकर विभिन्न वस्तुयें बाज़ार में बेची जाती हैं।  इन्हीं छाप में कहीं कहीं धर्मिक प्रतीकों का उपयोग होता है।  हमने बचपन में बीड़ी और साबुन पर हिन्दू प्रतीकों का उपयोग होते देखा है-तब कोई विरोध नहीं करता था। फिर अचानक पूरे विश्व में धर्म के प्रति जनजागरण हुआ।  भारत में राममंदिर आंदोलन ने भारी जनजागरण किया।  इसके बावजूद धार्मिक प्रतीकों की छाप उपयोग में लायी जाती रही है-इतना जरूर है कि बीड़ी या सिगरेट पर किसी को कोई आपत्ति नहीं होती पर कहीं चप्पल या जूते पर छाप आ जाये तो हाहाकार मच जाता है।  प्रश्न यह है कि बीड़ी पर धार्मिक प्रतीक छपता है तब यह धार्मिक ठेकेदार कहां जाते हैं जबकि चप्पल या जूते से यह बुरी चीज है! हमारा तो मानना है कि धार्मिक प्रतीक या नाम का उपयोग किसी तरह की वस्तु के साथ जोड़ना वर्जित होना चाहिये-इसके लिये भी सरकार से हस्तक्षेप की बजाय हम धर्म के ठेकेदारों से यह कहेंगे कि वह इसका विरोध कर जनता में धार्मिक प्रतीक या नाम के छाप वाली वस्तु के बहिष्कार की प्रेरणा उत्पन्न करें।
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                    नोट-इस विचार का संबंध उस कार्टून से कतई नहीं है जोहमने पंतजलि क्रीम को लेकर बनाया गया।  हम जैसे अध्यात्मिक साधक पंतजलि को योग साधना का प्रवर्तक ़या कहें भगवान ही मानते हैं।  उस कार्टून में पतंजलि का नाम देखकर पीड़ा हुई पर यह उनकी प्रेरणा है कि जल्दी उससे उबर भी गये। तब एक प्रश्न दिमाग में भी आया कि क्या कोई पतंजलि के नाम का उपयोग अपनी वस्तुओं केवल इसलिये कर सकता है कि वह स्वदेशी विचाराधारा का पोषक है।  वैसे भी पतंजलि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित नाम हो चुका है अतः देश की सीमाओं में उन्हें बांधना ठीक नहीं है।  बात यह भी आई कि जब आप किसी का नाम छाप के रूप में अपनी वस्तुओं में उपयोग करते हैं तो उसका मजाक उड़ाने का विरोध यह कहकर नहीं कर सकते कि इससे हमारी धार्मिक भावनाओं पर ठेस लगती है।  बहरहाल हम पहले ही लिख चुके कि ऊपर लिखे गये विचार से हमारे नोट का कोई संबंध नहीं है। लिखते लिखते कहां पहुंच जाते हैं यह हमें बाद में पता चलता है जब पाठ पूरा हो जाता है।
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                         तिहरे तलाक पर अंग्रेजी  और हिन्दी समाचार चैनल इतना समय बर्बाद कर चुके हैं कि उन्हें यह समझाना जरूरी है कि भईये तुम केवल हिन्दूओं की समस्याओं पर ही ध्यान दो।  मूल रूप से पहले तो यह तय करो कि हिन्दू धर्म या जीवन शैली-हमारा मानना है कि यह जीवन शैली है जिसका यहां की भूमि, भाषा तथा भावना से संबंध है। यहां विदेशी विचाराधारायें अपनी जगह स्थाई रूप से नहीं बना सकती है क्योंकि उनका उद्गम स्थल कहीं अन्यत्र है।  भारतीय या हिन्दू जीवन शैली सभी जगह चल सकती है क्योंकि उसमें अध्यात्मिक ज्ञान समाया हुआ है। दरअसल हमारे हिसाब से तो धर्म का संबंध कर्म तथा आचरण से है उसका कोई नाम नहीं हो सकता। धर्मनिरपेक्ष तो वही लोग होते हैं जिनका संबंध कदाचरण से है-ऐसे लोगों की संख्या कम होती है। इसलिये कोई भला आदमी यह कह ही नहीं सकता कि ‘मैं धर्म निरपेक्ष हूं।’ ट्रंप से हिन्दूओं की जीवन शैली, व्यवहार और व्यवसाय से प्रभावित होकर प्रशंसा की है जिसका सीधा संबंध हमारे क्षेत्र में उत्पन्न एक ऐसी अध्यात्मिक विचाराधारा से है जो सदाबहार है।

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