Wednesday, February 29, 2012

इश्क़ का सबूत-हिन्दी कविता (iskq ka saboot-hindi kavita or poem)

इश्क आसान है
अगर दिल से करना जानो तो
जिस्म से ज्यादा रूह को मानो तो
जहां कुछ पाने की ख्वाहिश पाली दिल में
सौदागरों के चंगुल में फंस जाओगे।
कहें दीपक बापू
कोई दौलत पाता है,
कोई उसे गँवाता है,
सिक्कों के खेल में
किसका पेट भरता है,
आम इंसान की ज़िंदगी
कभी कहानी नहीं बनती
चाहे जीता या मरता है,
किसी को होंठों से चूमना,
हाथ पकड़कर साथ साथ घूमना,
दिल का दिल से मिले होने का सबूत नहीं है,
जज़्बात बाहर दिखाये कोई ऐसा भूत नहीं,
इंसान के कायदे अलग हैं,
जिंदगी के उसूल अलग हैं,
करीब से जब जान लोगे
तभी सारे जहां पर हंस पाओगे।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com

यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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Saturday, February 25, 2012

रोना और हँसना-हिन्दी कविता

अब अपने दिल के घर से
बाहर आकर
न हम रोते
न हँसते हैं,
लोग पर्दे पर चलते अफसाने
देखते देखते
हो गए इस जहान के लोग
हर पल प्रपंच रचने के आदी
हम उनके जाल में यूं नहीं फँसते हैं।
कहें दीपक बापू
फिल्म की पटकथाएँ
और टीवी धारावाहिकों की कथाएँ
ले उड़ जाती हैं अक्ल पढ़े लिखे लोगों की
ख्याली दुनियाँ के पात्रों को ढूंढते हुए
ज़मीन की हक़ीक़तों में खुद ही धँसते हैं,
रोना तो छूट गया बरसों पहले
अब ज़माने के कभी बहते घड़ियाली आंसुओं
कभी फीकी उड़ती मुस्कान देखकर
अब अपने दिल को साथ लेकर
बस, हम भी हँसते हैं।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
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Saturday, February 11, 2012

नई सुबह और नया चेहरा-हिन्दी कविता (new morning and new face or nai subah aur naya chehra-hindi kavita and poem)

ज़िंदगी का कारवां
बस यूं ही बढ़ता जाएगा,
रास्ते में आएंगे नए पड़ाव
साथी और हमसफरों के चेहरे भी
बदलते रहेंगे
कोई पीछे छूटेगा
कोई आगे निकाल जाएगा।
कहें दीपक बापू
महफिलों में मिलने वाले लोग
भले ही ताउम्र साथ चलने का वादा करें
मगर रात बीतते बीतते
उनके दावों का असर भी खत्म हो जाएगा,
सुबह फिर कोई नया चेहरा सामने आयेगा।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
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Friday, February 3, 2012

सेठ हो या भिखारी-हिन्दी कविताएँ (seth ho ya bhkhari-hindi kavitaen or poem)

क्यों हाथ बढ़ाएँ
उन डूबते लोगों के लिए
मरना जिन्होने तय कर लिया है,
दरिंदों की सोहबत जितना बुरा है
उन लोगों का साथ निभाना
जिन्होने थोड़े मज़े की खातिर
मुसीबतों से लड़ना आसान समझ लिया है।
----------------
जो हाथ उठे हैं
हमेशा मांगने के लिए
वह किसी की उम्मीद नहीं बन सकते,
सेठ हो या भिखारी
जिनको प्यारी दौलत है
झूठ बोलते कभी नहीं थकते।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
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