Monday, November 28, 2011

आम आदमी कार्टून में खड़ा रहेगा-हिन्दी हास्य व्यंग्य कवितायें (comman man, cortton and corttunist-hindi satire comedy poem's)

बहुत मुद्दो पर बहस
टीवी चैनलों पर चलती है,
अखबारों में समाचारों के साथ
संपादकीय भी लिखे जाते हैं,
बरसों से मसले वहीं के वहीं हैं,
बस, चर्चाकार बदल जाते हैं।
लगता है आम आदमी इसी तरह
बेबस होकर कार्टूनों में खड़ा रहेगा
जिसकी समस्याओं के हल के लिये
रोज रोज बनती हैं नीतियां
कभी कार्यक्रमा भी बनाये जाते हैं।
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एक कार्टूनिस्ट से आम आदमी ने पूछा
‘‘यार,
आप जोरदार कार्टून बनाते हो,
हमारे दर्द को खूबसूरती बयान कर जाते हैं,
मगर समझ में नहीं आता
देश के मसले कब हल होंगे
हमारा उद्धार कब हो जायेगा।’’
सुनकर कार्टूनिस्ट ने कहा
‘‘सुबह सुबह शुभ बोलो,
जब यह देश का हर आदमी
दर्द से निकल जायेगा,
मेरे कार्टून के विषय हो जायेंगे लापता
नाम पर भी लगेेगा बट्टा
मगर भगवान की कृपा है
तुम जैसे लोग खड़े रहेंगे
मेरे कटघरे में इसी तरह
भले ही तुम अपनी जंग खुद लड़ते रहो
मगर तुम्हारे भले के लिये
कोई न कोई रोज नया आदमी खड़ा होगा,
अभिनय कर देवता बन जायेंगे
उनके नाटक पर
मेरे लिये रोज एक कार्टून तैयार हो जायेगा।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com

यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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Saturday, November 19, 2011

धोखे के पीछे सच सो रहा चादर तान-हिन्दी शायरियां (dhokhe ke peechhe sach so raha hai-hindi shayariyan)

इस धरती पर भी बहुत सारे तारे चलते हैं,
जहां को रौशन करने वाले चिराग भी जलते हैं।
जिन्होंने अपने चेहरे सजाये सौंदर्य प्रसाधनों से
उम्र के साथ वह भी डूबते सूरज की तरह ढलते हैं,
लूट लिया पसीने से कमाया खजाना उन्होंने
मेहनतकशों की दरियादिली पर जो रोज पलते हैं।
कहें दीपक बापू उखड़ जाती है जिनकी जल्दी सासें
लोग उनके आसरे अपनी जिंदगी रखकर मचलते हैं।
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गद्दार बता रहे हैं वफा की पहचान,
लुटेरे पा रहे हैं इस जहां में सम्मान।
सौंदर्य सज गया है नकली सोने से
क्या करेंगे जौहरी, सच लेंगे जो जान,
कहें दीपक बापू, जहां में अक्ल चर रही घास
धोखे की पीछे सच सो रहा है चादर तान।
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कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
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Sunday, November 13, 2011

अन्ना हजारे टीम के वरिष्ठ सदस्य अरविंद केजरीवाल के प्रचार माध्यम कर्मियों को टिप्स-हिन्दी व्यंग्य चिंत्तन (anna hazare's core team member arvind kejariwal and media workers-hindi satire thought)

             अन्ना हजारे की कथित कोर टीम की सक्रियता अब हास्य व्यंग्य का विषय बन रही है। अरविंद केजरीवाल एक तरह से इस तरह व्यवहार कर रहे हैं कि जैसे कि वह स्वयं कोई प्रधानमंत्री हों और अन्ना हजारे राष्ट्रपति जो उनकी सलाह के अनुरूप काम कर रहे हैं। दरअसल अब अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन पिछले अनेक महीनों से चलते हुए इतना लोकप्रिय हो गया है कि लगता है कि देश में कोई अन्य विषय ही लिखने या चर्चा करने के लिये नहीं बचा है। अरविंद केजरीवाल, प्रशांत भूषण, और किरण बेदी ने अन्ना हजारे के आंदोलन से जुड़कर जो प्रतिष्ठा पाई है वह उनके लिये इससे पहले सपना थी। इधर जनप्रिय हो जाने से इन सभी ने अनेक तरह के भ्रम पाल लिये हैं। इतना भ्रम तो ब्रह्मज्ञानी भी नहीं पालते। इसका अंदाज इनको नहीं है कि इस देश में बुद्धिमान लोगों की कमी नहीं है जो उनकी गतिविधियों और बयानों पर नजर रखे हुए हैं। अन्ना टीम के सदस्यों ने इतिहास के अनेक महापुरुषों को अपना आदर्श बनाया होगा पर उनको यह नहीं भूलना चाहिए उस समय प्रचार माध्यम इतने शक्तिशाली और तीव्रगामी नहीं थे वरना उनकी महानता भी धरातल पर आ जाती।
          बात दरअसल यह है कि अन्ना हजारे टीम के एक सदस्य अरविंद केजरीवाल अब प्रचार कर्मियों को समझा रहे हैं कि वह अपना ध्यान जनलोकपाल बनवाने पर ही रखें। अन्य विवादास्पद मुद्दो पर ध्यान न दें।
केजरीवाल की प्रचार माध्यमों में बने रहने की इच्छा तो अन्ना के पूर्व ब्लागर राजू परुलेकर ने बता ही दी थी। ऐसे में किरण बेदी के यात्रा दौरों पर विवाद पर बोलने के लिये किसने अरविंद केजरीवाल को प्रेरित किया था? इस सवाल का जवाब कौन देगा?
            किरण बेदी हर विषय पर ऐसा बोलती हैं कि गोया कि उनको हर विषय का ज्ञान है। प्रशांत भूषण ने कश्मीर के विषय पर बयान क्यों दिया? विश्वास नाम के एक सदस्य अन्ना के पूर्व ब्लागर राजू परूलेकर से बहस करने क्यों टीवी चैनल पर आ गये?
         एक ब्लाग लेखक होने के नाते राजू परुलेकर से हमें सहानुभूति है। इस विषय पर लिखे गये एक लेख पर हमारे एक सम्मानीय पाठक ने आपत्ति दर्ज कराई थी। हम उनका आदर करते हुए यह कहना चाहते हैं कि कि अन्ना हजारे और उनके भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को लेकर दुराग्रह नहीं है। इस आंदोलन को लेकर हमने संदेहास्पद बातें अंतर्जाल पर पढ़ी थी और हमें लगता है कि इसके कर्ताधर्ता अपनी गतिविधियों से दूर नहीं कर पाये है।
          अन्ना हजारे की प्रशंसा में अब हमें कोई प्रशंसात्मक शब्द भी नहीं कहना क्योंकि उनके दोनों अनशन केवल आश्वासन लेकर समाप्त हुए और इससे उन पर अनेक लोगों ने संदेह के टेग लगा दिये हैं। उनके साथ जुड़ी कथित सिविल सोसायटी के सदस्य भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से प्रचार पाकर अपने अन्य कार्यों के प्रचार में उसका लाभ उठा रहे हैं। कोई हल्का फुल्का लेखक होता तो उनको जोकर कहकर अपना जी हल्का कर लेता है पर हम जैसा चिंतक जानता है कि कहीं न कहीं इस आंदोलन  को जारी करने के पीछे जन असंतोष को भ्रमित करने का प्रायोजित भी हो सकता है। भ्रष्टाचार सहित अन्य समस्याओं से लोगों के असंतोष है। यह असंतोष की वीभत्स रूप न ले इसलिये उसके सामने काल्पनिक महानायक के रूप में अन्ना हजारे को प्रस्तुत किया गया लगता है क्योंकि उनका मार्गदर्शन करने वाली कथित कोर टीम में पेशेवर समाज सेवक हैं जो पहले ही अन्य विषयों पर चंदा लेकर अपनी सक्रियता दिखाते हैं। सीधी बात कहें कि बाज़ार अपना व्यवसाय चलाने के लिये समाज में धर्म, राजनीति, और फिल्म के अलावा सेवा के नाम पर भी संगठन प्रायोजित करता है ताकि लोग निराशा वादी हालतों में आशावाद के स्वप्न देखते हुए यथास्थिति के घेरे में बने रहें। माननीय टिप्पणीकार कहते हैं कि अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के के विरुद्ध समाज में चेतना जगायी पर उसका परिणाम क्या हुआ है? यह सवाल हम हर लेख में करते रहे हैं और इस जारी रखेंगे।
           अरविंद केजरीवाल प्रचार कर्मियों को सिखा रहे हैं कि अन्य विषयों से हटकर केवल भ्रष्टाचार पर ही अपना ध्यान केंद्रित करें। अब उनसे कौन सवाल करे कि किरण बेदी की यात्राओं पर विवाद पर उन्होंने क्यों अपना बयान दिया? सीधी बात है कि वह अपने को अन्ना का उत्तराधिकारी साबित करना चाहते हैं। भ्रष्टाचार हटाने में उनकी दिलचस्पी कितनी है यह तो समय बतायेगा। जब अन्ना के अनशन का प्रचार चरम पर था तब यही केजरीवाल हर निर्णय का जिम्मा अन्ना पर सौंप देते थे। अब इन्हीं  प्रचार माध्यमों ने उनको इतना ज्ञानवान बना दिया है कि वह उनको सिखा रहे हैं कि अपना ध्यान केवल जनलोकपाल पर केंद्रित करें।
          प्रशांत भूषण से किसने कहा था कि कश्मीर पर बयान दो। इससे भी एक महत्वपूर्ण बात है कि केजरीवाल ने कहा था कि हमारे साथ जुड़े छोटे मोटे विवादों से बड़ी समस्या देश में व्याप्त भ्रष्टाचार है फिर क्यों अन्य विषयों पर जवाब देने आ जाते हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि अन्ना हजारे की कोर टीम एक मुखौटा दिख रही है जिसकी डोर कहीं अन्यत्र केंद्रित है। अन्ना हजारे अनशन करने और आंदोलन चलाने में सिद्धहस्त हैं पर वह भी बिना पैसे नहीं चलते और यही पेशेवर समाज सेवक उनका खर्च उठाते हैं। ऐसे में यह संभव नहीं है कि अन्ना उनके बिना काम कर सकें। मूल बात यह है कि जब तक कोई परिणाम नहीं आता ऐसे सवाल उठते हैं। मूल बात यह है कि यह आंदोलन अभी नारों से आगे नहीं बढ़ पाया। इंटरनेट में फेसबुक के साथ ट्विटर पर इसका समर्थन बहुत दिखता है पर ब्लाग और वेबसाइटों पर अभी इसे परखा जा रहा है। फेसबुक और ट्विटर पर नारे लिखकर लोग काम चला लेते हैं इसलिये ‘अन्ना हम तुम्हारे साथ हैं, क्योंकि जनलोकपाल के पीछे तुम्हारे हाथ हैं’ के नारे लिखे जा सकते हैं पर ब्लाग और वेबसाईटों पर विस्तार से लिखने वाले पूरी बात लिखकर ही चैन पाते हैं। इसलिये अन्ना की कोर टीम को दूसरों से गंभीरता दिखाने की बजाय स्वयं गंभीर होना चाहिए।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
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Sunday, November 6, 2011

अन्ना हजारे टीम का ब्लॉगर से पंगा-हिन्दी व्यंग्य (anna hazare core team and his blogger-hindi satire or vyangya)

             अन्ना हजारे की टीम ने राजू परूलेकर नामक ब्लॉगर से पंगा लेकर अपने लिये बहुत बड़ी चुनौती बुला ली है। हमने परुलेकर को टीवी चैनलों पर देखा। अन्ना टीम का कोई सदस्य भी योग्यता में उनके मुकाबले कहीं नहीं टिकता। अब भले ही अन्ना हजारे ने अपनी टीम को बचाने के लिये उससे किनारा कर लिया है पर यह कहना कठिन है कि भविष्य में क्या करेंगे? अगर राजू परुलकर की बात को सही माने तो एक न एक दिन अन्ना का अपनी इसी कोर टीम से टकराव होगा।
             अन्ना हजारे का भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन अब एक ऐसी बहुभाषी फिल्म लगने लगी है जिसकी पटकथा बाज़ार के सौदागरों के प्रबंधकों ने राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक विषयों में पारंगत लेखकों से लिखवाया है तो इन्हीं क्षेत्रों में सक्रिय उनके प्रायोजित नायकों ने अभिनीत किया है। बाज़ार से पालित प्रचार माध्यम सामूहिक रूप से फिल्म को दिखा रहे हैं। इसे हम यूं भी कह सकते हैं कि जैसे किसी टीवी चैनल पर कोई कई कड़ियों का धारावाहिक प्रसारित हो रहा है। इसमें सब हैं। कॉमेडी, रोमांच, रहस्य, कलाबाजियां और गंभीर संवाद, सभी तरह का मसाला मिला हुआ है।
          अन्ना के ब्लॉगर राजू ने जिस तरह राजफाश किया उसके बाद अन्ना की गंभीर छवि से हमारा मोहभंग नहीं हुआ पर उनके आंदोलन की गंभीरता अब संदिग्ध दिख रही है। यहां हम पहले ही बता दें कि सरकार ने एक लोकपाल बनाने का फैसला किया था। उस समय तक अन्ना हजारे राष्ट्रीय परिदृश्य में कहीं नहीं दिखाई दे रहे थे। लोकपाल विधेयक के संसद में रखते ही अन्ना हजारे दिल्ली में अवतरित हो गये। उससे पहले बाबा रामदेव भी जमकर आंदोलन चलाते आ रहे थे। देश में भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक वातावरण बन गया था जिसका लाभ उठाने के लिये चंद पेशेवर समाजसेवकों ने अन्ना हजारे के लिये दिल्ली में अनशन की व्यवस्था की। अन्ना रालेगण सिद्धि और महाराष्ट्र में भले ही अपने साथ कुछ सहयोगी रखते हों पर दिल्ली में उनके लिये यह संभव इसलिये नहीं रहा होगा क्योंकि उनका कार्यक्षेत्र अपने प्रदेश के इर्दगिर्द ही रहा है। इन्हीं पेशेवर समाज सेवकों ने प्रचार माध्यमों की सहायता से अण्णा हजारे को महानायक बना दिया। देश में भ्रष्टाचार, बेरोजगारी तथा बीमारी से परेशान लोगों के लिये अण्णा हजारे एक ऐसी उम्मीद की किरण बन गये जिससे उनको रोशनी मिल सकती थी। प्रचार माध्यमों को एक ऐसी सामग्री मिल रही थी जिससे पाठक और दर्शक बांधे जा सकते थे ताकि उनके विज्ञापन का व्यवसाय चलता रहे।
        हालांकि अब अन्ना हजारे का जनलोकपाल बिल पास भी हो तो जनचर्चा का विषय नहीं बन पायेगा क्योंकि महंगाई का विषय इतना भयानक होता जा रहा है कि लोग अब यह मानने लगे हैं कि भ्रष्टाचार से ज्यादा संकट महंगाई का है जबकि अन्ना हजारे जनलोकपाल के नारे के साथ ही चलते जा रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह कि वह दूसरों को बनाये प्रारूप पर काम कर रहे हैं। स्पष्टतः यह जनलोकपाल उनके स्वयं का चिंत्तन का परिणाम नहीं है। गांधीजी की तरह उनकी गहन चिंत्तन की क्षमता प्रमाणिक नहीं मानी जा सकती। जहां तक उनके आंदोलनों और अनशन का सवाल है तो वह यह स्वयं कहते हैं कि उन्होंने कई मंत्री हटवायें हैं और सरकारें गिरायी हैं। ऐसे में यह पूछा जा सकता है कि उनके प्रयासों से रिक्त हुए स्थानों पर कौन लोग विराजमान हुए? क्या वह अपने पूर्ववर्तियों  की तरह से साफ सुथरे रह पाये? आम आदमी को उनसे क्या लाभ हुआ? सीधी बात कहें तों उनके अनशन या आंदोलन दीर्घ या स्थाई परिणाम वाले नहीं रहे। अगर उनका प्रस्तावित जनलोकपाल विधेयक यथारूप पारित भी होता है तो वह परिणाममूलक रहेगा यह तय नहीं है। ऐसे में उनका आंदोलन आम लोगों को अपनी परेशानियों से अलग हटाकर सपनों में व्यस्त व्यस्त रखने का प्रयास लगता है। जिस तरह फिल्मों के सपने बेचे जाते हैं उसी तरह अब जीवंत फिल्में समाचारों के रूप प्रसारित होती दिख रही हैं।
           अभी तक अन्ना को निर्विवाद माना जाता था पर राजू ब्लॉगर को हटाकर उन्होंने अपनी छवि को भारी हानि पहुंचाई है। राजू ब्लॉगर के अनुसार अन्ना चौकड़ी के दबाव में आ जाते हैं। इतना ही नहीं यह चौकड़ी उनका सम्मान नहीं करती। जिस तरह अन्ना ने पहले इस चौकड़ी से पीछा छुड़ाने की बात कही और दिल्ली आकर फिर उसके ही कार्यक्रम को आगे बढ़ा रहे हैं उससे लगता है कि कहीं न कहंी न वह अपने अनशन और आंदोलन पर खर्च होने वाले पैसे के लिये उनके कृतज्ञ हैं। जब देश में पेट्रोल के दाम बढ़ने पर शोर मचा है तब अपने फोन टेपिंग का मामला प्रचार माध्यमों में उछाल रहे हैं। एक तरफ कहते हैं कि हमें इसकी चिंता नहीं है दूसरी तरफ अपने राष्ट्रभक्त होने का प्रमाणपत्र दिखा रहे हैं। सीधी बात कहें तो पेट्रोल की मूल्यवृद्धि से लाभान्वित पूंजीपतियों को प्रसन्न कर रहे हैं जो कहीं न कहीं इन पेशेवर समाजसेवकों के प्रायोजक हो सकते हैं।
        अब हमारी दिलचस्पी अन्ना हजारे से अधिक राजू ब्लॉगर में हैं। अन्ना ने दूसरा ब्लाग बनाकर दो सहायकों को रखने की बात कही है। राजू ब्लॉगर ने एक बात कही थी कि उनके ब्लॉग देखकर अन्ना टीम ने यह प्रतिबंध लगाया था कि उनसे पूछे बगैर उस पर कोई सामग्री नहीं रखी जाये। अन्ना ने इस पर सहमति भी दी थी। राजू ब्लॉगर ने उस पर अमल नहीं किया पर अब लगता है कि अन्ना के नये सहायक अब यही करेंगे। ऐसा भी लगता है कि उनकी नियुक्ति अन्ना टीम अपने खर्च पर ही करेगी। ऐसे में अन्ना हजारे पूरी तरह से प्रायोजक शक्तियों के हाथ में फंस गये लगते हैं। वह त्यागी होने का दावा भले करते हों पर रालेगण सिद्धि से दिल्ली और दिल्ली से रालेगण सिद्धि बिना पैसे के यात्रा नहंी होती। बिना पैसे के अनशन के लिये टैंट और लाउडस्पीकर भी नहीं लगते। अन्ना की टीम के चार पांच पेशेवर समाज सेवक पैसा लगाते हैं इसलिये पच्चीस सदस्यीय समिति में उनका ही रुतवा है। अभी तक अन्ना इस रुतवे में फंसे नहीं दिखते थे पर अगर राजू परुलेकर की बात मानी जाये तो अब वह स्वतंत्र नहीं दिखते। आखिरी बात यह है कि कहीं न कहीं अन्ना हजारे के मन में आत्मप्रचार की भूख है जिसे शांत रखने के लिये वह किसी की भी सहायता ले सकते हैं। राजू ब्लॉगर के अनुसार अन्ना ने अपनी टीम के सबसे ताकतवर सदस्य के बारे में कहा था कि ‘समय पड़ने पर गधे को भी बाप बनाना पड़ता है।’
          मतलब अन्ना जांगरुक और त्यागी हैं तो आत्मप्रचार पाने के इच्छुक होने के साथ ही चालाक भी हैं। इधर अन्ना टीम ने एक ऐसे ब्लॉगर से पंगा लिया है जो लिखने पढ़ने और जानकारी के विषय में उनसे कई गुना अधिक क्षमतावान है। अभी तक अन्ना विरोधी जो काम नहीं कर पाये यह ब्लॉगर वही कर सकता है। ऐसे में अगर वह अन्ना टीम प्रचार माध्यमों में भारी पड़ा तो अन्ना पुनः उसे बुला सकते हैं। बहरहाल आने वाला समय एक जीवंत फिल्म में नये उतार चढ़ाव का है। आखिर इस धारावाहिक या फिल्म में एक ब्लॉगर जो दृश्य में आ रहा है। यह अलग बात है कि फिल्म या धारावाहिकों में इस तरह का परिवर्तन नाटकीय लगता है पर अन्ना हजारे के आंदोलन के जीवंत प्रसारण में यह एकदम स्वाभाविक है। हम यह दावा नहीं करते कि यह आंदोलन प्रायोजित है पर अगर है तो पटकथाकारों को मानना पड़ेगा।
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